क़ाबा इबादतगाह या मक्केश्वर मंदिर ?

क़ाबा इबादतगाह या मक्केश्वर मंदिर ?

सबसे पहले बता दूं पोस्ट को Share Like भले आप ना करें Copy कर लें लेकिन मुसलमान होने पे फ़ख्र करो औऱ तमाम मुस्लिम और गैर मुस्लिमों तक इस पोस्ट को पहुंचना ज़िम्मेदारी आपकी है 
क्योंकि ग़ैर मज़हब बिना इस्लाम की जड़ तक जाए बगैर कुछ भी मनघडंत फैला देता हैं हम चाहते हैं ग़ैर मुस्लिम भाई औऱ बहने भी इस बात से रुबरू हों ।

तकरीबन एक साल पहले मेरे कुछ कुलिग्स(साथियों) ने पुछा की क्या यह सही है की काबे के अंदर भगवान् शिव क़ैद हैं? इसी लिये वहां हिन्दू प्रवेश वर्जित है ?

तीन दिन पहले इसी अफवाह की हिमायत में एक मुस्लिम मित्र की वाल पर कुतर्क़ों भरा पोस्ट देख हैरानी हुई।
कल भी इसी बात की चर्चा को सुना
और आज एक अखबार में इसी के बारे में लेख पढ़ कर दुःख हुआ
अंतताः सोचा के इस मिथक या झूट को आइना दिखाना जरूरी है। एक दोस्त से इस बारे में बात हुई तो उन्होंने बड़ी मुफीद सलाह दी के दलीलें हदीस से न दें क्यू कि मुनाफ़िक़ हदीसों को नहीँ मानेंगे, इसलिये तर्क़ सामाजिक, सांस्कर्तिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक रखने की पूरी कोशिश है। मक़सद सिर्फ एक कि ऐसा लेख जब आपको नज़र आये तो कॉउंटर करने के लिये सभी के पास पर्याप्त दलीलें होना जरूरी है।

सवाल न. 1 :- अरब मे हिन्दूं रहते थे , जिसका प्रमाण है वह मूर्ति पूजा करते थे।

जवाब:- सच है अरब में इस्लाम आगमन से पहले मूर्ति पूजा का चलन था , पर अरबियों को हिन्दू मान लेना बेवकूफी होगी।
अरब धर्म के अभाव में जिस चीज़ में भी शक्ति या चमत्कार देखते उसे ख़ुदा के रूप में पूजने लगते थे , पर सभी का कोई एक भगवान् नही था बल्कि हर क़बीला अपना अलग ही भगवान् रखता था। लेकिन यूनान में भी एटलस और युनाइडस और ऐसे बहुत से देवताओं को मूर्ति रूप में ही पूजा जाता , मिस्र में फराओं (फिरऔन) के मंदिर और मूर्तियां पूजी जाती , यहाँ तक की क्रिस्चन ईसू को मूर्ति रूप में ही पूजते हैं , बौद्ध जैन भी मूर्ति रूप में ही भगवान् की पूजा करते हैं तो क्या यह सब हिन्दू हैं ? नही , ऐसे ही अरब मूर्ति पूजा करते थे पर हिन्दू थे इसका कोई प्रमाण नही

सवाल न. 2 :- काबे में शिव लिंग के रूप में भगवान् शिव को मुसलमानो ने क़ैद कर रखा है

जवाब:- काबे की इनर फ़ोटो गूगल पर मौजूद हैं , खुद देख लें,दूसरी बात की हिन्दू मान्यता अनुसार भगवान् शिव असीम शक्तिशाली हैं , लेकिन वह 500 साल से क़ैद हैं ? क्यू वह तांडव नही करते ? कैसे उन्ही के बनाये इंसानो ने इंसानो द्वारा क़ैद कर लिये गए ?
यह बात बोल कर सनातनी शिव जी के भगवान् होने पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं क्यू की लोग पूछेंगे कि क्या इतना मजबूर और शक्तिहीन प्राणी भगवान् हो सकता है?

सवाल न. 3 :- हिन्दू पंडित और औरतों की साड़ियों का बिना सिला होना और हज के दौरान अहराम का बिना सिला होना यह बताता है की हिन्दुस्तान और अरब में सांस्कर्तिक रिश्ते थे और मक्का पहले मक्केश्वर था

जवाब:- आज जो लिबास हिन्दू पहनते हैं यह पहले ऐसा था ही नही , नसीम हिजाज़ी ने अपनी बुक में कई हवाले दिए हैं की भारतीय हिन्दू औरतें मुहम्मद बिन क़ासिम के आक्रमण के पूर्व मात्र घागरा और चोली पहनती थीं , जिसमे उनके आधे बक्ष और नाभि तथा नितम्ब नज़र आते थे कृष्ण और गोपिओं के चित्र कथाओं में इसकी पुष्टि हो जाती है, आज भी इसका कुछ जगह चलन है और आदमी अर्ध नग्न रह सिर्फ धोती बांधते थे
जब क़ासिम ने यह देखा तो उन्ह अरतों की नग्नता देख बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और मुस्लिम सिपाही अपने सर के अमामे उतार कर उनक वक्ष पर ढँक देते जहाँ से हिन्दुस्तान में दुपट्टे का चलन शुरू हुआ।

तो अरब और हिन्दुस्तान में इस्लामिक आगमन से कुछ ही साल पहले बस तिजारती रिश्तों के ही सुबूत मिलते हैं इसलिए यह कोरा आरोप मात्र है

सवाल न. 4 :- भारत कभी अरब का अभिन्न अंग था और महा प्रलय के बाद अलग हुआ पर संस्कीरति वही रही , इसलिये मक्का के मक्केश्वर मंदिर होने के चांस हैं

जवाब :- हंसी को क़ाबू करते हुए मै इस सवाल का जवाब भी पूरे सयंम से दूंगी - मक्केश्वर का अगर संधि विच्छेद किया जाए तो ( मक्का + ईश्वर) ईश्वर एक हिंदी या संस्करत का शब्द है।
और बड़े बड़े खगोल शाश्त्री और पुरातत्व विज्ञानी भी चाहें तो साबित नही कर सकते के मक्का में अरबी के अलावा कोई और भाषा कभी बोली जाती थी फिर तो यह मक्केश्वर शब्द ही एक मज़ाक हो गया अब इसकी सार्थकता कितनी हास्यास्पद है यह अंदाजा लगाया जा सकता है

आखरी बात कि ऐसा कोई प्रमाण नही के अरब में कभी कोई महा प्रलय काबा निर्माण के बाद आई या उससे पहले आई हो इसका सबसे बड़ा सुबूत राजिस्थान की रेत और अरब तथा साऊथ अफ़्रीका की रेत में कोई समानता नही है, भूगोल का स्टडी करने वाले अच्छे से जानते हैं

सवाल न. 5 :- हिज्रे असवद (काला पत्थर) ही शिव लिंग है , जब काबा में ही पत्थर रखा है और मुस्लिम उसे पूजते हैं तो यह मूर्ति पूजा नही क्या ? इसलिये इस्लाम एक आडम्बर है

जवाब :- द्वितीय इस्लामिक खलीफा हज़रत उमर का एक वक्तव्य इसे समझ ने के लिये काफी है " ए हजरे असवद ! मै तुझे इसलिये चूमता हूँ की मेरे नबी ने तुझे चूमा था, वरना तू सिर्फ एक बेजान पत्थर है और कुछ नही".
मगर गैर मुस्लिम इस बात से संतुष्ट नही होते।
वह कहते हैं कि पत्थर लगाया ही क्यू?
इस बात पर मुसलमान कहते हैं की यह जन्नत से उतारा गया था इसलिये , और कुछ हदीसें भी पेश करते हैं जिससे वह कुतर्कों के साथ मुसलामानों का मज़ाक बना देते हैं
बहुत सीधा और साफ़ जवाब है कि हजरे असवद न भी लगया गया होता तो उससे हज , इस्लाम और मुसलमानो पर कोई फर्क नही , लेकिन यह लगाया गया क्यू की इंसान को क़ाबे के चरों और घूमते समय अपने फेरों की संख्या याद रहे ,, हजरे असवद (Starting to end point) है मतलब के हजरे असवद से शुरू तवाफ़ का एक चक्कर वहीँ पर ख़त्म होता इसलिये हजरे असवद को लगाया गया

और अंत में एक बात कि " इस्लाम का उदय ही मूर्ति पूजा आडम्बर और पाखंड के विरोध स्वरुप हुआ है , इस्लाम में एकेश्वर वाद के प्रसस्त मार्ग के सिवा सब पाखंड और पाप है".
लेकिन मुझे समझ नही आता की बौद्ध और क्रिश्चिअन भी अल्प रूप में मूर्ति पूजा करते हैं उनपर कोई भी सांस्कर्तिक दावा नही करता , सिर्फ मक्का ही क्यू?

इसका जवाब भी वही है की धर्म के रूप में सिर्फ इस्लाम ही है जो मूर्ति पूजा का मुखर विरोधी है।

Anwar sama

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